
गोवर्धन पर्वत यानी गिरिराजजी की महिमा को शब्दों में सीमित नहीं किया जा सकता। 21 किमी में विराजमान गिरिराजजी को सब देवों का देव भी कहा जाता है। यहां देश ही नहीं बल्कि विदेशों से लोग गिरिराज महाराज के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य बनाने आते हैं। मान्यता है कि, जो व्यक्ति गोवर्धन की परिक्रमा करता है, उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। साथ ही जो लोग यह परिक्रमा पूरी करते हैं, उन्हें सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। परिक्रमा की मुख्य शुरुआती स्थल दानघाटी मंदिर पर भक्त मत्था टेककर अपनी परिक्रमा शुरू करते हैं। भक्त आन्यौर, पूंछरी, जतीपुरा व राधाकुंड होकर पावनी मानसी गंगा में फव्वारों के बीच स्नान करते हैं।
गोवर्धन दानघाटी मंदिर के मुख्य पुजारी मीना लाल ने बताया कि, द्वापर युग में भगवान विष्णु ने ब्रज में भगवान श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। नंदगांव और बरसाना में भगवान श्री कृष्ण लीलाएं करते थे। भगवान श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत पर गाय चराने जाते थे। उस समय सभी बृजवासियों में इंद्रदेव की पूजा करने की परंपरा थी। दीपावली के अगले दिन नंद बाबा और बृजवासी इंद्रदेव की पूजा करने की तैयारी में जुटे हुए थे। इसपर भगवान श्री कृष्ण ने नंद बाबा से पूछा कि हम इंद्रदेव की पूजा क्यों करते हैं, जबकि हमारी गायों को भोजन और हमारी अन्य जरूरत गोवर्धन पर्वत पूरी करते हैं। हमें इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन की पूजा करनी चाहिए। इस तरह पहली बार ब्रजवासियों ने इंद्रदेव के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा की।
तो इससे इंद्रदेव नाराज हो गए. इंद्रदेव ने ब्रज पर अपना कहर बरपान शुरू कर दिया और दिन-रात मूसलाधार बरसात का दौर शुरू हो गया। पूरा ब्रज बरसात से त्राहिमाम कर रहा था, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपने बाएं हाथ की कनिष्का उंगली पर गोवर्धन पर्वत को धारण किया और उसके नीचे पूरे ब्रज क्षेत्र के लोग, गाय और जीव जंतुओं ने शरण ली।
इंद्रदेव गुस्से में ब्रज क्षेत्र पर मूसलाधार बरसात करते रहे। इस दौरान पूरा ब्रज गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लेकर बैठा रहा। गोवर्धन पर्वत के ऊपर भगवान श्री कृष्ण का सुदर्शन चक्र चलता रहा और पूरे ब्रज क्षेत्र की मूसलाधार बरसात और इंद्रदेव के क्रोध से रक्षा की। आखिर में इंद्रदेव का क्रोध शांत हुआ और वो भगवान श्री कृष्ण की शरण में पहुंचे. तभी से दीपावली के अगले दिन प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जा रही है।
दानघाटी मंदिर के सेवायत दीपू पुरोहित ने बताया कि, दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा श्रद्धा भाव से मनाया जाएगा। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है, साथ ही विशाल अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसमें मौसमी सब्जियों, मिष्ठान और पकवानों के मिश्रण से तैयार अन्नकूट का भोग लगाया जाता है।
दानघाटी मंदिर के सेवायत दीपू पुरोहित ने बताया कि, 2 नवंबर को गोवर्धन पूजा अन्नकूट के दिन सर्वप्रथम गिरिराज प्रभु का दूध और पंचामृत अभिषेक होगा। सुबह 4 बजे गिरिराज शिलाओं पर दूध की धार शुरू होगा। उसके प्रभु का स्वर्णिम श्रंगार होगा। जो भक्तों को अपलक निहारने पर विवश कर देता है। इसके उपरांत प्रभु को 56 भोग और अन्नकूट का भोग समर्पित होगा। इसमें कई तरह की सब्जियां, मिष्ठान, कड़ी, चावल, बाजरा, रोटी, पूआ, पूरी, पकौड़ी, खीर, माखन मिश्री आदि होते हैं।