बूंदी के इस कस्बे में दीवाली पर होता है पटाखा युद्ध: 40 वर्षो से जारी है परम्परा; पटाखा युद्ध मे कई युवक हुए घायल

बूंदी के नैनवां कस्बे में 40 वर्षों से अधिक समय से चली आ रही पटाखा युद्ध की परम्परा का शुक्रवार रात एक बार फिर निर्वाह हुआ। युद्ध के लिए दो दलों में बटे युवाओं ने एक दूसरे पर जमकर पटाखे छोड़े। युद्ध के दौरान कई युवा घायल होने के साथ आग से झुलसे भी। हालांकि किसी ने भी इस तरह की पुलिस में न तो शिकायत करवाई और ना एक दूसरे पर पटाखे छोड़ने का आरोप लगाए। इससे पहले पटाखा युद्ध मे राकेट व सुतली बमों को एक दूसरे पर फेके गए। पटाखा युद्ध से पुरा कस्बा आतिशी धमाको से गूंज उठा। कई युवक इस दौरान घायल भी हुए। आपको बता दे कि पटाखा युद्ध नैनवां मे पिछले 44 सालो से युवाओ ओर कस्बे के लोगो के लिए एक रोमांचित कर देने वाला अवसर होता है। दीपावली के दुसरे दिन होने वाले पटाखा युद्ध मे युवाओं के दल जान जोखिम मे डालकर एक दुसरे पर पटाखे छोड़ते है। पटाखा युद्ध को देखने के लिए लोग घरों की छत पर डट जाते है। शाम से देर रात 11 बजे तक पटाखे से सारा इलाका गुंजयमान रहता है।

दो दलों में शामिल होकर युवा करते है युद्ध का आगाज

नैनवां मे भी दीपावली के दुसरे दिन होने वाले पटाखा युद्ध मे दो दलो ने अपनी अपनी सीमाओं से आगे बढकर एक दुसरे दलो के लोगो के ऊपर जमकर राकेट बमों से हमले किये। तो कस्बे की सुनसान गलियां ओर चौराहे आतिशी धमाकों से थरथराने लगी। इस पटाखा युद्ध मे कई युवा घायल भी हुए।इसको लेकर आसपास के ग्रामीणों मे काफी उत्सुकता रही ओर वे पटाखा युद्ध देखने पहुंचे।इस दौरान नैनवां एसएचओ महेन्द्र यादव युद्ध के दौरान शान्ति व्यवस्था के लिए बाजार व गलियों मे घूमकर लोगो के साथ समझाईश करते रहे ओर विवाद से दूर रहने की नसीहत देते रहे।

बैलों की पुजा से हुई पटाखा युद्ध की शुरूआत

इतिहास के जानकार व नैनवां के सेवा निवृत्त लेक्चरर भवानी सिंह सोलंकी बताते है कि इस पटाखा युद्ध का कोई ऐतिहासिक रिकार्ड नही है।यह रिवाज समय के साथ बदलकर एक परम्परा बन गया है जो नैनवां मे पिछले 44 सालो से बदस्तूर चला आ रहा है। ऐसा माना जाता है कि पहले बैलों की दीपावली पर किसान अपने बैलों का पूजन करने के बाद बैलों को मंदिर ढोक दिलाने मंदिर लाया करते थे।तब लोग खुशी मे पटाखे चलाया करते थे।पटाखो की धूम धडाक से बैल बिदकने लगते थे।बडी संख्या मे बैलों के साथ ग्रामीणों की मौजूदगी उत्सव के उत्साह को दुगना कर देती थी।अब कृषि कार्य में लंबे समय से बैलों का उपयोग लगभग बंद हो गया है। इसी के चलते लोगों ने बैलों की दीपावली पर अब एक-दूसरे पर पटाखा फेंकना शुरू कर दिया।

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